देश में हमारे ये क्या हो रहा हैं,
इंसान इंसान से खफा हो रहा है,
खतरे में वजूद है हमारे वतन का,
छल कपट में इजाफ़ा हो रहा है।
ग़मों की हर तरफ गिर रही बिजलियाँ हैं,
अपने ही चमन में लुट रही तितलियाँ हैं,
कहीं अइयाशियों पे छाई रंगीनियाँ हैं,
कहीं घर में मुसीबतों की परछाइयाँ हैं।
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